अरे! ये बिहार बोर्ड से अाई है !
कपड़े देखो इसके! गवांर
वो ५वी कक्षा कभी भूल नहीं सकती मैं, जब पटना आई थी गांव से , मेरे कपड़े सुंदर नहीं थे
और नई जगह पे नया बिजनेस स्टार्ट करना अपने में कठिन काम है सो गरीबी तो
थी लेकिन पिता जी ने उस हालत में भी हमारी पढ़ाई को प्राथमिकता दी और हमें
औकात के अनुसार एक छोटे से स्कूल में भरती कर दिया इसलिए शायद ज्ञान और
पढ़ाई की अहमियत को अच्छे से जानते हैं हम।
जब
प्राइवेट स्कूल में आए तो यहां के बच्चे हमें नीचे दर्जे के जान पता नहीं
क्यों इतना नफरत करते थे। खैर उनका तो पता नहीं परन्तु नए शहर और नए स्कूल
दोनों जगह हम अकेला महसूस करते थे।
पढ़ाई भी सब इंग्लिश में थी सो शुरू शुरू में समझने में दिक्कत आती थी और नतीज़ा शिक्षक भी हमें पसंद नहीं करते थे।
जब
५ का फाइनल परीक्षा आया तो सारे सब्जेक्ट ( हिंदी को छोड़) फेल पूरा २६%
बस , सारे शिक्षकों नें बुराई की लाइन लगा दी मां के पास, और बोला इससे ना
होगा बेकार उम्मीद लगा रखी है आपने ( मैं बता दूं मेरी बहन उसी में नंबर ले
के आई और भाई भी)
फिर मां निराश हो गई और हमें निराशा भरी नज़र से देख रही थी , कुछ कहना तो चाहती थी परन्तु कह नहीं पा रही थी
पता नहीं तभी हमारे क्लास टीचर को क्या हुआ ( सुनील सर उनका नाम था और ये असली नाम है) , वो आए पास और बोला ,
सुनील सर:- नमस्ते ! आप मनीषा की मां है?
मां
:- हाँ सर, नमस्ते! क्या कहूं पढ़ती तो रहती है परन्तु इस माहौल में ढल
नहीं पा रही , अब हम भी पढ़े लिखे नहीं है कि पढ़ा सकें, अभी ट्यूशन भी तो
बहुत महंगी मिलती है।
सुनील
सर:- अरे! क्या बोल रही हैं, इसे ट्यूशन की जरुरत ही नहीं है , बहुत
मेहनती है और मुझे पूरा भरोसा है अगले साल आपको और अपने क्लास टीचर को
नाराज़ नहीं करेगी । क्या मनीषा , है ना? और ट्यूशन तुम क्लास के बाद मुझसे
सारे क्वेश्चन पूछना , तुम्हारे सवाल का हल निकाले बिना अब घर नहीं जाऊंगा बाकी तुम्हारी मेहनत ।तुम्हारी मेहनत तुम्हें अगले साल टॉपर भी बना सकती है।
मुझे मनीषा पे भरोसा है, आप भी रखिए , और देखिए क्या करती है ये।
बस
सर की उन बातों नें जैसे मुझमें साहस भर दिया , और पता नहीं क्या हुआ हमने
अचानक बहुत पढ़ना शुरू कर दिया , मन में एक ही बात अगले साल किसी भी शर्त
पे सर को नाराज़ नहीं करूंगी , हां सर को समय नहीं मिल पाया कि रोज पढ़ा
सकें सो हम सर के घर पहुंच जाते थे सवालों का बंडल ले के हर रविवार । बस
ज़िद अजीब सी, अपने आप को जीतने की। दोस्त भले अभी भी नीच मानते थे कोई बात
भी नहीं करता था परन्तु अब ध्यान ही नहीं था उनमें, लगे थे हम खुद में।
धीरे धीरे , कक्षा में चमकने लगे और सुनील सर हमेशा बोलते थे , आ गया बस एग्ज़ाम का समय मनीषा याद है ना?
खैर उनकी ये बातें जैसे मुझमें जोश भर देती थी और
आ गया वो समय एग्जाम का ,
ओवर ऑल परसेंटेज:- 92%
सोशल साइंस के मार्क्स ( सुनील सर का सब्जेक्ट):- 99
क्लास रैंक :- 4
हां भाई हम टॉपर नहीं बन पाए पर मां और सुनील सर के नजर में हम टॉपर थे और सोशल साइंस की हाईएस्ट स्कोरर ।
¶¶ बदलाव :-
१. क्लास में सब दोस्त बन गए।
२. कॉफिडेंस खुद पे आ गया , कपड़े भले अभी भी पुराने थे परन्तु अब कॉन्फिडेंस का मेकअप लग गया था।
३. टीचर्स हमें पसंद करने लगे सारे परंतु हम तो १०वीं तक सुनील सर के ही चमची बने रहे , क्लास टीचर कोई भी हों।
सीख:-
१. बस आपका विश्वास किसी पे भी , उसकी ज़िन्दगी बदल सकता है ( सुनील सर के विश्वास ने बदली मेरी).
२. अपने लक्ष्य पर ध्यान रखिए , दोस्त मित्र आपके अच्छे बनने का इंतजार कर रहे हैं , आपके अच्छे और सफल बनते ही वो आपके पास आ जाएंगे।
३.
कभी भी अपने वचन से पीछे मत हटिए , उस वक़्त अगर मैं हट जाती तो सुनील सर
तो मुझे भूल ही जाते और मैं खुद को कभी सम्मान नहीं दे पाती।
४. कपड़ा नहीं आत्मविश्वास आपकी सच्ची सुंदरता है।
५. ज़िद से कुछ भी हासिल हो सकता है अगर लगातार मेहनत होती रहे तो।
खैर सुनील सर अब मिलते नहीं परन्तु उनकी शिक्षा ने हमारे जीवन को बहुत कुछ दे दिया इसलिए कभी उन्हें भूल नहीं सकते हम।
अभी लंबा रास्ता है बस ज़िद कम नहीं हुई है अपने सपनों तक पहुंचने की , आग लगी हुई है देखते हैं क्या क्या जलाती है।
शिक्षा और विश्वास बस बांटते ही रहेंगे सब में,
क्या पता कब मेरी बातों का असर हो किसी पे और वो बदल जाए।
(खैर पापा का बिजनेस अच्छा चल गया था और आर्थिक समस्या का भी हल हो गया २ साल में)
चित्र स्रोत :- गूगल।
वैसे
संघर्ष जैसे भगवान ने हमें तोहफा में दिया है हर मोड़ पे , अब तो बिना
मेहनत का कुछ मिल जाए तो शक हो जाता है कि दाल में कुछ काला है , और सही
में काला ही होता है।
-Manisha Jha
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